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कानून


बाबर ने राम मंदिर कानून के अंतर्गत नहीं गिराया तो पुनः राम मंदिर बनाने के लिए क्यों कानून के सहारे की बात की जा रही है? बिना कानून से गिराये गये को पुनः बिना कानून से ही बनाया जाना चाहिए। 625 रियासतों को जब भारत में सम्मिलित किया गया तब किसी कानून के तहत नहीं किया गया। स्पष्ट है, लक्ष्य प्राप्ति हेतु बस एक ही कानून है- ‘बस, लक्ष्य को प्राप्त करो।'


शासक


शासक को योग्य, विद्वान, कुशल प्रबंधक, नीति निपुण, सर्व लोक कल्याण हेतु प्रतिबद्ध, बलवान, धार्मिक, उच्चादर्श युक्त, उत्साही, शीघ्र कार्य करने वाला, दृढ़ निश्चयी, दण्ड विधान का पालनकर्ता, परिश्रमी, विवेकशील, प्रजा को प्रसन्न रखने वाला, सदाचरण युक्त, विद्या-व्यसनी, सत्य-वक्ता, कृतज्ञ व समर्थ अधिकारियों से युक्त होना चाहिएभारत के वर्तमान शासक में सिवाय अंत के तीन गुणों के सभी गुण हैं।


(सूरज सुजान) 


 


हम सब भारत के लाल 


राजस्थान के पुष्कर में मंदिर के पुजारी ने श्री राहुल गांधी का गोत्र पूछा तो उन्होंने कहा कि वह कौल ब्राह्मण हैं तथा उनका गोत्र दत्तात्रेय है। श्री राहुल गांधी के पिता श्री राजीव गांधी के नाना का गोत्र उनका गोत्र कैसे हो सकता है? श्री राजीव गांधी के पिता श्री फिरोज गांधी पारसी थे। इस प्रकार राहुल गांधी का गोत्र उनके अपने दादा के गोत्र से होगा। अच्छा तो यह होता कि वे श्री शिवराज सिंह चौहान की तरह यह जवाब देते कि-


हम सब भारत के लाल,


भेदभाव का कहां सवाल।


(सूरज सुजान)


 


सच लिखने की मुश्किलें


कई खट्टे-मीठे संस्मरण मैं आप से साझा कर रहा हूं और यह बताने की चेष्टा भी कि अखबार निकालना और सत्य की राह पर चलना कितना दुरूह कार्य है। अखबार में जिसका प्रशंसागान करो, वह खुश और जिसकी वास्तविकता लिखो, वह नाखुश। इस अखबार से तो नाखुशों की तादाद ज्यादा ही रही है। कईयों ने तो समय-समय पर हिसाब चुकता करने की बात भी कही है।


- मनोहर चावला, बीकानेर एक्सप्रेस


 


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न भारतीयो नववत्सरौयं तथापि सर्वस्य शिवप्रदः स्यात्।


यतो धरित्री निखिलैव माता ततः कुटुम्बायितमेव विश्वम्॥


यद्यपि यह नव वर्ष भारतीय नहीं है। तथापि सबके लिए कल्याणप्रद हो; क्योंकि सम्पूर्ण धरा माता ही है।- माता भूमिः पुत्रीहं पृथिव्याः। अतएव पृथ्वी के पुत्र होने के कारण समग्र विश्व ही कुटुम्बस्वरूप है।


पाश्चात्य नव वर्ष आंग्ल संवत्सर 2019 की प्रथम नव प्रभातवेला में सभी संप्रदायों की संस्कृति का सम्मान करते हए मैं आप सभी को अंग्रेजी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें देता हूँ और आशा करता हूँ कि जिस उत्साह और उमंग के साथ आप अंग्रेजी नववर्ष मना रहे हैं, उसी उत्साह और उमंग के साथ आप भारतीय नववर्ष भी मनाएँगे, जो चैत्र के महीने के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि को आता है। एक कदम संस्कृति की ओर।


धन्यवाद। आपका हर क्षण मंगलमय हो।


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पाश्चात्य संस्कृति के परिचायक इस अंग्रेजी वर्ष के आगमन की बधाई देना उचित तो नहीं लग रहा है, परन्तु गुरुदेव कहते हैं नदी के बहाव के विपरीत तैरना मर्खतापूर्ण ही होता है। 


नववर्ष की शुभकामनायें तो मैं वीर सम्वत आरम्भ होने वाले दिन देहूँ और आगे गुडी पाडवा पर ही दे पाऊँगा.. फिलहाल पश्चिमी लहरों के चलते बस यही कहूँगा की आप सभी का आने वाला समय अति उत्तम सफलतापूर्ण आये...


*


ये नव वर्ष मेरा नहीं, कैसे मनाऊ..? 


जिन्होंने मेरे भविष्य के लिए जवानी बलिदान की, उनको क्या मॅह दिखाऊ.?


कैसे मनाऊ नव वर्ष उन अत्याचारियों का... 


जिनके कारण बलिदान हुआ करोड़ों क्रांतिकारियों का।


भारतीय सीमा पर हमारे देश व संस्कृति की रक्षा करने वाले जवान रक्त जमा देने वाली ठण्ड में पूर्ण चुस्ती से खड़े हैं और हम पाश्चात्य / आंग्ल संवत्सर को मौज-मस्ती से मनाएँ, इससे अधिक शर्म की बात क्या होगी? 


*


बहुत से लोगों ने अभी से (कैलेन्डर) नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाएं देना प्रारम्भ कर दिया है। इस परिप्रेक्ष्य में मैं आप सब के समक्ष राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ-


ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं। 


है अपना ये त्यौहार नहीं।


है अपनी ये तो रीत नहीं,


है अपना ये व्यवहार नहीं,


धरा ठिठुरती है सर्दी से,


आकाश में कोहरा गहरा है,


बाग बाजारों की सरहद पर,


सर्द हवा का पहरा है,


सूना है प्रकृति का आँगन,


कुछ रंग नहीं, उमंग नहीं,


हर कोई है घर में दुबका हुआ,


नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं,


चंद मास अभी इंतजार करो,


निज मन में तनिक विचार करो,


नये साल नया कुछ हो तो सही,


क्यों नकल में सारी अक्ल बही,


उल्लास मंद है जन-मन का,


आयी है अभी बहार नहीं,


ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं,


है अपना ये त्यौहार नहीं।


ये धुंध कुहासा छंटने दो,


रातों का राज्य सिमटने दो,


प्रकृति का रूप निखरने दो,


फागुन का रंग बिखरने दो,


प्रकृति दुल्हन का रूप धार,


जब स्नेह-सुधा बरसायेगी,


शस्य-श्यामला धरती माता,


घर-घर खुशहाली लायेगी,


तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि,


नव वर्ष मनाया जायेगा।


आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर,


जयगान सुनाया जायेगा,


युक्ति-प्रमाण से स्वयंसिद्ध,


नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध,


आर्यों की कीर्ति सदा-सदा,


नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा,


अनमोल विरासत के धनिकों को,


चाहिये कोई उधार नहीं,


ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं।


है अपना ये त्यौहार नहीं,


है अपनी ये तो रीत नहीं,


है अपना ये त्यौहार नहीं।


- राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर'


 


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एस.सी. / एस.टी. पर आये उच्चतम न्यायालय के फैसले के विरोध में क्यों सरकार संसद से कानून ले कर आयी? सीलिंग हेतु भी तो उच्चतम न्यायालय को धता बताया था, क्यों? सरकार का राम मन्दिर के बिन्दु पर यह कहना कि हम न्यायालय के आदेश की प्रतीक्षा करेंगे व उसे मानेंगे। क्या यह ढकोंसला नहीं लगता? 


*


समय पर कर अदा करने वाली भारत की जनता का कांग्रेस / बीजेपी आदि सभी राजनैतिक दलों से निवेदन है कि- वो कर्ज माफी व खैरात बांटने (लेपटोप, साइकल, साड़ी, सस्ते अनाज आदि) की घोषणा, हमारे द्वारा चुकाये हुए कर से ना करके, अपने पार्टी फंड से करें। क्योंकि वादा राजनैतिक दल करते हैं, न कि कर चुकाने वाले। देश की जनता कर देश के विकास के लिए देती है ना कि मुफ्त में खैरात बांटने या कर्ज माफी के लिये। कृपया इसे उच्चतम न्यायालय व चुनाव आयोग तक पहुंचाएं। उच्चतम न्यायालय व चुनाव आयोग को इस हेतु दिशा निर्देश जारी करना चाहिए कि ऐसी घोषणा राजनैतिक दल के अधिकार क्षेत्र में नहीं आनी चाहिए व अगर कोई करते हैं तो इसका भुगतान वे अपने दल के व्यक्तिगत फण्ड से करें।


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ननिहाल की एक बात बहुत अच्छी लगती है,


वहां लोग हमें हमारी माँ के नाम से पहचानते हैं।


-Mani Binavakia, Kolkata


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शाहरुख की बीबी हिन्दू, आमिर की बीबी हिन्दू, सैफ अली खान की एक नहीं दो दो बीबी हिन्दू, नसरुद्दीन शाह की बीबी हिन्दू और इन सबको हमेशा हिंदुस्तान से डर लगता है.... और इधर, मेरी भी बीबी हिन्दू लेकिन मैं बीबी के अलावा किसी से नहीं डरता।


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मेरा समस्त डॉक्टरों से हाथ जोड़ कर निवेदन है कि जब भी कोई 'जज' बीमार पड़े .....तो उसे दवा देने के बजाय अगली तारीख दे दें। देश की न्याय व्यवस्था सुधर जाएगी।


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Japanese Proverb-


If one can Do, You can Do.


If no one can Do, You must Do.


Indian Proverb-


If one can Do, Let him Do.


If no one can Do, What can I Do?


-Chetan Sethia, Bikaner


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Your cell phone has already replaced your Watch, Camera, Calendar & Alarm clock.


Please don't let it Replace your Family.


-Manoj Sethia, Kathmandu


 


उत्तराध्ययन सूत्र


श्रमण प्रभु महावीर की अंतिम देशना


पावापुरी में भगवान महावीर अपनी मुक्ति के द्वार पर खड़े हैं और संपूर्ण चैतन्य जगत को अपना अंतिम संदेश दे रहे हैं। भगवान महावीर की यह अंतिम वाणी उत्तराध्ययन सूत्र में संकलित है।


उत्तराध्ययन सूत्र जैन धर्म की गीता है। इसका वैसा ही महत्व है, जैसा ईसाइयों के लिए बाइबल का, मुस्लिमों के लिए कुरान का, सिक्खों के लिए गुरूग्रंथ साहब का और बौद्धों के लिए त्रिपिटक का है। यदि उत्तराध्ययन सूत्र समझ लिया और अपना लिया तो मानो पूरा जैनत्व समझ और अपना लिया। जैन दर्शन के लगभग हर विद्वान ने, हर लेखक चिंतक महामुनि और महासती ने उत्तराध्ययन सूत्र का प्राकृत भाषा से अन्य भाषाओं में अनुवाद किया है, इसकी व्याख्या की है और टीकाएं लिखी हैं। जैन दर्शन में उत्तराध्ययन सूत्र का महत्व, गरिमा और प्रासंगिकता इसी तथ्य से रेखांकित है कि दीपावली महापर्व के पावन अवसर पर इसकी सर्वत्र वांचना होती है । यह भगवान महावीर की मानवता के नाम वसीयत है।


जैसे व्यक्ति अपने जीवन की अंतिम वेला पर शुद्ध मन से वो उद्घाटित करता है, जो वह जीवन भर नहीं कर पाता, जिसे वह सबसे ज्यादा उपयोगी और अपनी भावी पीढ़ी के लिए सार्थक और मार्गदर्शक समझता है। उसी रूप में उत्तराध्ययन सूत्र, श्रमण प्रभु महावीर की अंतिम वाणी, उनकी साधना, उनके तप और उनके ज्ञान का मानवता के लिए अमर अनुदान है। ज्ञान के इस एवरेस्ट को निहारने का प्रयास करें, ज्ञान की इस गंगा में उतरने का साहस करें।(प्रो. रतन जैन)


 


 


 


 


             


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


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