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                                हम भारतीय हैं, बस...


राजस्थान के चितौड़ के महाराणा प्रताप हों,मराठा के शिवाजी महाराज हों या सिख गुरु सबने अत्याचारी विदेशी आक्रांता मुगल शासकों के विरुद्ध जंग लड़ी। मुगल शासक इतने क्रूर हो गये कि बलात धर्म परिवर्तन कराना, धर्म स्थलों व ग्रंथों को नष्ट करना, हिन्द औरतों के साथ बदसलकी करना, जजिया टैक्स वसूल करना एक आम व रोज़मर्रा की बात बन गयी थी।


हिन्दू राजा संगठित नहीं थे व इतने स्वार्थी थे कि वे एक-दूसरे के लिये सहयोग करना तो दूर जब कोई पड़ोसी राज्य विपदा में होता तो उसे अपने विनोद स्वरूप लेतेयही कारण था कि मुट्ठीभर गोरियों, तुगलकों, मुगलों व अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान पर शासन किया।


आज भी हम बंटे हुये हैं व संकीर्ण राजनीति का शिकार हो रहे हैं। हिन्दओं को जात-पात व ऊंच-नीच में बांटकर फूट डालो राज करो पर राजनीति कर रहे हैंवहीं मुस्लिम व ईसाई संख्या में कमजोर होने के उपरान्त एकता एवं निर्धारित लक्ष्य के कारण प्रत्येक राजनैतिक पार्टी को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल हो जाते हैं। क्षेत्रीय पार्टियों को देश को मजबूत बनाने का कार्य करना चाहिये, लेकिन उसके उलट मात्र अपने प्रभाव वाले राज्य/क्षेत्र में मात्र अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिये मराठा व गैर मराठा, गुजराती व गैर गुजराती की बात करना किसी भी बिन्दु से देशहित में नहीं। ऐसी बात करने वाले एक तरफ तो हिन्दुत्व की बात करते हैं, दूसरी ओर उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान आदि से आये हिन्दुओं के साथ मारपीट व बर्बरता का व्यवहार करते हैंवे दिग्भ्रमित हैं एवं स्वयं अपने उद्देश्य में ही स्पष्ट नहीं कि उन्हें क्या करना है?


आज आवश्यकता है जातिगत राजनीति से ऊपर उठकर पूरे देश को एक सूत्र में बांधकर सक्षम व सुदृढ़ नेतृत्व देने की, ब्राह्मण नेता, जाट नेता, यादव नेता, राजपूत नेता, पिछड़ी जाति के नेता, आदिवासी नेता आदि संज्ञाओं से ऊपर उठकर सवा सौ करोड़ देशवासियों को नेतृत्व देने की, मार्गदर्शन देने की। ध र्म व जाति के आधार पर नेतृत्व देश को कमजोर ही करेगा। 


कभी राजनैतिक फायदे के लिये एक देश एक कानून' की बात की जाती है तो कभी उसके उलट सप्रीम कोर्ट के फैसले के उपरान्त SC/ST हेत अपशब्द की शिकायत के साथ हवालात में डालने का प्रावधान, वह भी बिना प्रमाणित हुये कि शिकायत गलत है या सही, का कानून पुनः लागू संसद पारित कर देती हैवहीं सवर्ण की अपशब्द की शिकायत पर सीधे हवालात नहीं होती है।


हमारे नेतागण धर्म व जाति के चक्कर में कभी जनेऊ धारण कर लेते हैं, वहीं कहीं पर जालीदार गोल टोपी पहन लेते हैं। इन सब दिखावों व ढकोसलों से जनता ऊब चुकी हैगिरगिट की तरह रंग बदल कर जनता को बेवकूफ बनाना बन्द करना होगा। 1 सेकेण्ड पूर्व 1 घंटे तक तबीयत से गाली देकर अगले सेकेण्ड में गले मिलने का दिखावा करने को जनता खूब समझती है। जनता तो यह भी समझती है कि जो व्यक्ति व्यापार व उद्योग में असफल हैं उन्हें विदेश की डील में इतना महत्व दिये जाने के पीछे की मन्शा क्या है? 


देश में धार्मिक उन्माद पैदा करने से राजनीतिज्ञों को बचना चाहिये अगर वे देश का भला चाहते हैं। किसी भी धार्मिक व परमार्थिक संस्थानों पर शिकंजा पहले तो कसा ही नहीं जाना चाहिये व अगर कसना ही है तो सभी पर एक समान न कि मात्र हिन्दू मन्दिरों अथवा संस्थानों/संस्थाओं पर।


वर्तमान में पाकिस्तान, कनाडा, अमेरिका, व इंग्लैंड से हमारे ही भाइयों को गुमराह कर उन्हें अपने ही देश व भाइयों के विरुद्ध उकसाया जा रहा है, खालिस्तान की मांग करने हेतु। इस हेतु हमें उनके उद्भव के उद्देश्य को जानना होगा :-


सिख पंथः सिख पंथ की स्थापना का एकमात्र उद्देश्य था हिन्दुओं की रक्षा करना। हिन्दुओं में से ही युवा हौसला रखने वाले बहादुर जांबाज थे उनकी एक फौज बनाई गयी व उनकी एक अलग पहचान साहसी व वीर पुरुष की बने इस उद्देश्य से एक वेश भूषा हेतु उन्हें केश रखना अर्थात् केश न काटने की हिदायत दी गयी। 


उन वीरों ने अपने भाइयों की रक्षा करने का प्रण लिया व पूरी वीरता के साथ निभाया। सिख पंथ की स्थापना में सर्वप्रथम पँच प्यारों को तैयार किया जो अलग-अलग प्रान्त व जाति के थे। सभी हिन्दू थे। उन सभी का एकमात्र उद्देश्य था मुस्लिम आक्रांताओं से हिन्दुओं की रक्षा करना ।


वर्तमान में पाकिस्तान ने सिखों को गुमराह कर उन्हें अपने ही भाईयों के विरुद्ध इतना उकसा दिया कि आज कुछ सिख अपने ही भाइयों (हिन्दुओं) से अलग राज्य बनाने की बात उठाते हुये खालिस्तान की मांग करने लगे।


पहले हमलोगों में फूट थी व हम अलग-अलग छोटी रियासतों में बंटे हुये थे उसका फायदा उठाकर मुट्ठी भर खिलजियों/गोरियों/तुगलकों/मुगलों ने व बाद में मुट्ठी भर अंग्रेजों ने हम पर राज किया। लेकिन जब सुभाषचन्द्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह आदि के कारण पूरे भारत में एकता के नारे लगे तो विवश होकर अंग्रेजों को भारत को आजाद करना पड़ा। वहाँ गाँधीजी के हठ के कारण धर्म के आधार पर देश के टुकड़े होने के उपरान्त भारत को धर्म निरपेक्ष बनाकर हिन्दुओं के अलावा (हिन्दु अर्थात् वैष्णव, शैव, सनातन, बौद्ध, जैन व सिख आदि) मुसलमानों व ईसाईयों को भी इस देश में बराबर के अधिकार दे दिये। जबकि धर्म के आधार पर हुये बंटवारे में कम से कम मुस्लिम को तो पाकिस्तान भेजा ही जाना चाहिये था।


सिख बन्धुओं से निवेदन है कि वे किसी के बहकावे में न आयें। हिन्दु से सिख अलग कैसे हो सकते हैं? सिख बने ही हिन्दुओं से हैं, हिन्दुओं की रक्षा करने के लिये। जब सारा हिन्दुस्तान उनका है तो फिर खालिस्तान की मांग क्यों?


सिख बहुल राज्य अर्थात् पंजाब में एक ही घर में सिख और हिन्दु साथ-साथ रहते हैं क्योंकि सिख कोई अलग नहीं वे हिन्दु ही हैं।


अब समय आ गया है कि हमारी पहचान सिर्फ भारतीय से हो, न कि गुजराती, मराठी, पंजाबी, बिहारी, बंगाली, राजस्थानी आदि से या राजपूत, ब्राह्मण, जाट, गूजर से, या सवर्ण, पिछड़े अनुसूचित, आदिवासी आदि से। संविधान प्राप्त अधिकारों एवं सीमाओं में प्रत्येक नागरिक तथा वर्ग के प्रति समान व्यवहार करना होगा। राष्ट्र एवं राष्ट्रहित ही सर्वोपरि होना चाहिये एवं राजनीतिक दलों को भी रास्ट्र की एकता एवं समानता को सुपुष्ट करने का सतत प्रयास करना चाहिये ।


बिना विजन 'दिल्ली लैण्ड पूलिंग पॉलिसी' 


केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने दिल्ली की ‘लैण्ड पलिंग पॉलीसी' (LLP) को एक लम्बे अन्तराल के बाद नोटिफाइड किया। 40,000 एकड़ से अधिक भूमि पर मात्र 17 लाख मकान 76 लाख लोगों के लिए बनाये जायेंगे। यू.एन. की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में 2028 तक जनसंख्या 4.25 करोड़ हो जायेगी। स्पष्ट है 2.50 करोड़ की जगह मात्र 76 लाख लोगों को बसाने में पूरी भूमि को खत्म कर दिया जायेगा तो बाकि 1.74 करोड़ की जनसंख्या अवैध रूप से बनी कॉलोनियों में रहने को विवश होगी।


आपत्तियां व सुझाव के समय सभी ने कन्टिजियस लैण्ड, कन्सोर्टियम, 400 की जगह 200 FAR व EDC के रूप में 2 करोड़ रुपये प्रति एकड़ का जोरदार विरोध किया था। सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगी, जैसे आपत्ति व सुझाव तो मात्र औपचारिकता के लिये थी, करना वही था जो सोच रखा था।


‘सबके लिये आवास संगठन' ने प्रधानमंत्री, केन्द्रीय मंत्री, उप-राज्यपाल व डी.डी.ए. के कमिश्नर को अनेकों बार ज्ञापन भेजा जो एक विजन के साथ में था (नेशलन हेरिडेज सिटिज। भविष्य में बढ़ती आबादी के मदे नज़र 17 लाख मकानों की जगह 60 लाख मकानों (2.5 करोड़ लोगों को बसाने हेतु) की योजना जो बिना किसी सरकारी लागत व किसानों से बिना EDC शुल्क वसुल (प्रति एकड 2 करोड़ रुपये) थी।


इस क्षेत्र में रहने वालों के लिये पर्याप्त रोजगार, सरकार के लिए बड़े रेवन्यू की योजना एवं देशी/विदेशी पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु यूनिवर्सल स्टूडियो, डिज्नी लैण्ड, सेन्टोसा आइलैण्ड, एम्यूजमेन्ट पार्क जैसे विश्वस्तरीय पर्यटन स्थल, रंगमंच, 10,000 व्यक्तियों के बैठने की क्षमता वाला बहुउद्देश्यीय इन्डोर स्टेडियम, कन्वेशन सेन्टर, प्रगति मैदान जैसा प्रदर्शनी स्थल आदि योजना लिये था। सरकारी योजना में मात्र 80 हजार करोड़ के रेवेन्यू की योजना (वह भी किसानों से वसूलने की है) जबकि नये विज़न के साथ 10 लाख करोड़ का रेवेन्यू मिलता। इस नये विज़न में 300 मीटर चौड़ी व 57 कि.मी. लम्बी व मेट्रोयुक्त नेशनल हेरीटेज कोरिडोर के साथ बिजली, पानी में इस क्षेत्र को स्वावलम्बी बनाना भी था। साथ ही साथ किसानों से ली जा रही 40% जमीन का 2 करोड़ रुपया मुआवजा देने का प्रावधान भी था।


‘सबके लिये आवास संगठन' के विज़न से इस क्षेत्र को डेवलप किया जाता तो यह क्षेत्र दुनिया का सबसे सुंदर शहर बनता जो मंत्रियों व सरकारी अधिकारियों की उदासीनता के चलते नहीं बन पायेगा।


खरतर उद्भवः 1080


‘खरतरगच्छ का आदिकालीन इतिहास' के पृष्ठ-88 पर लिखा है कि विक्रम संवत् 1076 में दिल्ली के राजा के पुत्र को सांप ने काटा जिसे मृत समझ लिया गया। वर्धमानसूरि की अमृत-स्रावनी दृष्टि पड़ते ही होश आ गया। इसके प्रभाव से राजा ने जैन धर्म स्वीकार किया। पृष्ठ-91 पर लिखा है कि वर्धमानसूरि 17 शिष्यों के साथ भामह' नामक बड़े व्यापारी के संघ के साथ गुर्जर देश की ओर चले। ‘खरतरगच्छ का बृहद इतिहास' के पृष्ठ-1 पर भी दिल्ली का उल्लेख मिलता है व पृष्ठ-2 पर ‘भामह' नामक बड़े व्यापारी के संघ के साथ गुर्जर देश की ओर कूच करने का उल्लेख है। वि.सं. 1076 के दिल्ली प्रवास के बाद कब तक उस क्षेत्र में थे स्पष्ट नहीं व कब ‘भामह' नामक व्यापारी के साथ विहार किया, शोध का विषय है। उपरोक्त से एक बात का तो अनुमान लगता है कि दिल्ली से गुर्जर देश की ओर प्रस्थान वि.सं. 1076 के बाद ही हुआ।