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                                      दिल्ली के लिए ‘मास्टर प्लान 2021?


                                        ( पुनरावलोकन, फरवरी-2007 का सम्पादकीय)


दिल्ली 'मास्टर प्लान 2021'  आने से पहले और आने के बाद काफी चर्चित रहा। आने से पहले और आने के बाद काफी चर्चित रहा। आने से पहले जितनी आशा व विश्वास के साथ प्रतीक्षा थी, आने के बाद उससे कई गुना निराशा हाथ लगी। दिल्ली का नागरिक अपने आप को ठगा व लुटा हुआ सा महसूस करने लगा।


‘मास्टर प्लान 2021' केवल ‘माफिया प्लान 2021' बन कर रह गया। जिसने जितना अवैध कार्य किया, दिल्ली को बदसूरत बनाया, कानून की धज्जियां उड़ाई व आम जनता को लूटा, उसे प्रोत्साहित किया गया; या यूं कहें कि उन्हें पारितोषिक मिला। विधिसम्मत कार्य करने वाला नागरिक अपने को मूर्ख अनुभव करने लगा। इस प्लान के द्वारा कितने ही गलत कार्यों को कानूनी मान्यता प्रदान कर दी गई।


इसका नाम तो जरूर ‘मास्टर प्लान 2021' रखा, किन्तु इसमें प्लान बनाने में किसी (प्लानिंग विभाग) का दिमाग लगा हो, ऐसा लगता नहीं। इससे तो अच्छा यही होता कि बिना किसी मास्टर प्लान के ही दिल्ली में काम होता रहता। इससे कम से कम इतना तो होता कि कुछ सीमा तक कार्य तो कानून के दायरे में होता रहता। इस ‘मास्टर प्लान 2021' के कारण लोगों में कानून का भय लेशमात्र भी नहीं रहा। कानून का उल्लंघन करते जाओ और उन कार्यों को बाद में विधि-सम्मत कानून में परिवर्तन कर कराते जाओ, यही मेसेज है इस मास्टर प्लान का।


यदि मास्टर प्लान का उद्देश्य ही मात्र पांच साल के लिए चुनाव जीतना हो तो परिणाम तो ऐसे ही आयेंगे। मास्टर प्लान पास करने वालों ने बेशर्मी की सभी सीमायें लांघ दी हैं। जरा सा भी कहीं शर्म व संकोच का भाव दिखाई नहीं देता। और तो और, इसमें शर्म दिखाने का दिखावा मात्र भी नहीं किया गया है। सदियों के लिए जहां शहर के उत्थान व रख-रखाव की योजना बननी चाहिए थी, वहां मात्र पांच साल के चुनाव के लिए सभी कुछ नजरअंदाज कर दिया गया। साथ ही इस शहर की दुर्दशा का ऐसा बीज बोया कि अब सदियों तक इस शहर का उत्थान व रख-रखाव अनियंत्रित ही होता रहेगा।


व्यापारी वर्ग को खुश करने के लिए तो मात्र बहाना बनाया गया और मास्टर प्लान बनाया गया कुछ दूसरे लोगों को ध्यान में रखकर। जो लोग शहर की कानून-व्यवस्था के लिए जी जान से प्रयास कर रहे थे, उन्हें उनकी औकात दिखा दी मास्टर प्लान बनाने वालों ने । गौरवशाली शहर में गरिमापूर्वक व सुख-चैन से रहने का सपना अब समाप्त हो गया। सच में तो ऐसे सपने देखने वालों के लिए यह शहर अब रहा ही नहीं। ऐसा सपना देखने वाले अब अपना आसरा कहीं और ढूंढे। 


सुप्रीम कोर्ट ने भी अपना दम लगाया था कि किसी प्रकार से देश की राजधानी को सुव्यवस्थित रखा जा सके और यहां का उत्थान, विकास व रख-रखाव एक सोची समझी योजना के अंतर्गत रह सके। लेकिन सरकार की मंशा ऐसी नहीं थी। उसे तो अवैध निर्माण करने वालों की येन-केन-प्रकारेण सुरक्षा की चिन्ता थी। सीलिंग के कारण हुई तोड़फोड़ का परिणाम मात्र उसकी चपेट में आये लोगों के धन का नुकसान व मानसिक तनाव ही रहा।


इससे ऐसा प्रतीत होता है कि जिसकी जैसी पहुंच थी, उसने वैसा कानून पास कराया। अब दिल्ली इसी अव्यवस्था के साथ व्यवस्थित प्रगति करती रहेगी । हरियाली तो मात्र दिल्ली के सरकारी बंगलों तक ही सीमित हो जायेगी, बाकी तो होगा कंक्रीट का जंगल। दुनिया की सबसे सुन्दर राजधानी बनाने का सपना दिखाने वालों का जंगलराज होगा। 


शासन करने वाली सरकार ने परिस्थितियां ऐसी पैदा कर दी थीं कि विपक्ष न तो समर्थन कर सकता है और न ही विरोध कर सकता है। दिल्ली किसके भरोसे है, किसी की समझ में नहीं आ रहा।


‘ए’ और ‘बी' श्रेणी, सैनिक फॉर्म, अनन्तराम डेरी से उनके वोट नहीं प्रभावित होते, इसलिए इन्हें अधर में लटका दिया गया है। यह सोच है हमारी सरकार की और यही सोच है विपक्ष की। नहीं तो जब सारी दिल्ली को छूट दे दी गई तो इन्हें छूट न देने का कारण आखिर क्या है?


सीलिंग की तोड़फोड़ से हजारों व्यक्तियों को जो भयंकर वेदना हुई, उनकी मन:स्थिति के बारे में शायद ही किसी ने सोचा हो? जिनकी पहुँच थी, वे येन-केन-प्रकारेण अपने आप को बचाते रहे और उन्होंने अपने अवैध कार्यों पर आंच नहीं आने दी। पेट तो उनका जल रहा है, जो ईमानदारी से सीलिंग करवा कर अपना सब कुछ गंवा बैठे । द्रष्टव्य हैं मास्टर प्लान के प्रति लोगों के कुछ उद्गार• इसमें प्लानिंग जैसी कोई बात ही नहीं है• कचरा कर के रख दिया दिल्ली का। • सिर्फ वोट बटोरने के लिए है• अब ट्रैफिक और पार्किंग का हाल और अधिक बुरा होगा। • बिजली, पानी की समस्या और बढ़ेगी। • जनसंख्या का तनाव बढ़ेगा।


                                       दिल्ली लैण्ड पूलिंग पॉलिसी


उपरोक्त सम्पादकीय 11 वर्ष पूर्व लिखा गया। सरकार भी बदल गयी, लेकिन सरकारी बाबू तो वही हैं। उनकी सोच में समय के अनुसार, वर्तमान की आवश्यकता के अनुसार, कुछ भी बदलने की जरूरत महसूस नहीं होती। उसी पुराने ढर्रे पर उनकी वही घिसी-पिटी सोच है। बार-बार उनसे मिले, उन्हें पत्र दिये, एक नया विज़न (दृष्टि) दिया, लेकिन उनके तो जैसे कान पर जूं तक नहीं रेंगी। सरकारी बाबुओं के भरोसे चलने वाले केन्द्रीय मंत्री व उपराज्यपाल अर्थात् डी.डी.ए. के चेयरमैन तक नये विज़न पर चिन्तन करने हेतु समय निकाल नहीं पाये। 


यू.एन. की रिपोर्ट के मुताबिक 2028 तक दिल्ली की जनसंख्या साढे चार करोड़ हो जायेगी। उस विस्तार हेतु डी.डी.ए. की ‘लैण्ड पूलिंग पॉलिसी' में कोई योजनाबद्ध प्रावधान तक नहीं। ऐसे में अनधिकृत निर्माण को कैसे रोक पायेंगे? 


लैण्ड पूलिंग क्षेत्र के बीच से 30 वर्ष पूर्व 80 मीटर चौड़ी व 57 कि.मी. लम्बी UER-1 नामक मार्ग की योजना थी। अभी तक मात्र 3.5 कि.मी. बनी है। उसके लिये भी इस लैण्ड पूलिंग पॉलिसी में कोई चिन्तन किया गया हो, संदेह है। 


पूर्व के 400 FAR को घटाकर 200 FAR कर दिया व बहाना बनाया पानी की कमी का। अधिकृत निर्माण पर तो पानी के बहाने रोक लगी, उसे कम कर दिया । क्या अनधिकृत निर्माण को रोक पायेंगे? नये विज़न से चलते तो लैण्ड पूलिंग का पूरा क्षेत्र पानी व बिजली हेतु स्वावलम्बी बन सकता था। पर्यावरण से भी सुरक्षित रह सकता व यातायात की भी कोई समस्या नहीं होती। 


डी.डी.ए. द्वारा पास की जा रही लैण्ड पूलिंग में न तो परफेक्ट ग्रिड में बनाने की योजना, न हेरीटेज को दर्शाने की सोच, न पर्यटन को बढ़ाने हेतु कोई गुंजाइश, न बढ़ती आबादी के अन्तर्गत लैण्ड पूलिंग में आवास विस्तार हेतु कोई विज़न, न ही रिहाइश के साथ रोजगार उपलब्ध कराने हेतु कोई चिन्तन। 'सबके लिये आवास संगठन' के नये विज़न से पूरी 40-50 हजार एकड़ का एक साथ एक मुस्त योजना बनती जो किसी भी अन्तर्राष्ट्रीय शहर से चार गुना अच्छी होती।


इस योजना के तहत भूमिधरों से न मात्र उनकी 40% जमीन बिना किसी मुआवजा के ली जायेगी वरन् उल्टे 2 करोड़ रु० प्रति एकड़, शत् प्रतिशत जमीन पर वसूले जायेंगे EDC चार्जेज के रूप में। कर्ज में डूबे व आत्महत्या कर रहे किसानों के पास 2 करोड़ प्रति एकड़ कहाँ से आयेगा, यह सोचने की फुर्सत नहीं, योजना बनाने वाले अधिकारियों के पास।


इतनी विशाल योजना हेतु रेवेन्यू के लिये किसानों के ऊपर बोझ लादा जा रहा है जबकि 'सबके लिये आवास संगठन' के विजन के साथ कार्य हो तो उससे 12 गुना रेवेन्यू बिना किसानों से लिये आसानी से उत्पन्न (जेनेरेट) कर सकते थे।


‘सबके लिये आवास' नामक संगठन से उन्हें वह नया विज़न भी दिया लेकिन उस नये विज़न को समझने के लिए किसी के पास समय नहीं उल्टे उस विज़न को मात्र आगे से आगे फॉरवर्ड करते रहे। 


तकलीफ होती है कि दिल्ली के लिये चिंता करने वाला न कोई मंत्रालय में है न डी.डी.ए. में। दिल्ली के सांसद व विधायक को इस पर गम्भीर चिन्तन के साथ कुछ मेहनत करनी चाहिये थी, लेकिन सांसद उदासीन हैं व विधायक का अधिकार क्षेत्र नहीं।


आदरणीय प्रधानमंत्री जी इसमें सीधे हस्तक्षेप कर सम्बंधित विभाग व अधिकारियों को नये विज़न के हिसाब से स्मार्ट दिल्ली की योजना बनाने का आदेश करें।