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                                              क्षमा


मनु स्मृति के अनुसार धर्म के दस लक्षण बताये गये हैं। इन दस लक्षणों में क्षमा दूसरे स्थान पर परिगणित है। इस संसार में क्षमा एक वशीकरण के रूप में व्यक्त है। भला क्षमा से क्या सिद्ध नहीं होता। जिसके हाथ में शांति रूपी तलवार है, उसका दुष्ट पुरुष क्या कर लेगा? इसलिए कहा गया है कि 'क्षमा हि परमम् बलम्।' वास्तव में मनुष्य का सबसे बड़ा आभूषण क्षमा है। सत्य ही कहा गया है कि-


नरस्या भरणं रूपं रूपस्या भरणं गुणः।


गुणस्याभरणं ज्ञानं ज्ञानस्या भरणं क्षमा।


अर्थात् मनुष्य का आभूषण उसका रूप है। रूप का आभूषण उसका गुण हैगुण का आभूषण ज्ञान है और ज्ञान का आभूषण क्षमा है। इनमें क्षमा ही सर्वोपरि है।


क्षमा को मानस तीर्थ में एक तीर्थ माना गया है। स्कंध पुराण में कहा गया है कि सत्य तीर्थ है। क्षमा तीर्थ है। इंद्रियों पर नियंत्रण रखना भी तीर्थ है। सब प्राणियों पर दया करना तीर्थ है और सरलता भी तीर्थ है-


सत्यं तीर्थ क्षमा तीर्थ तीर्थ मिन्द्रिय निग्रहः।


सर्वभूत दया तीर्थ मार्जव भेव च।


इसी प्रकार क्षमा की महिमा का वर्णन करते हुए विद्वानों ने कहा है-


क्षमा धर्मः क्षमा सत्यं क्षमा दानं क्षमा यशः।


क्षमा स्वर्गस्य सोपानमिति वेद वेदो बिदुः॥


क्षमा मन की एक उदान्त दशा है। एक श्रेष्ठ भाव है। क्षमा कर देने से क्षमा निष्काम कर्म कोटि में आ जाती है और निष्काम कर्म को धर्म शास्त्रों में सर्वोत्तम माना गया है। तत्वदर्शी मनीषियों का कथन है कि जो लोग न क्षमा मांगना जानते हैं और न ही क्षमा करना, वे अपने लिए इस धरती पर ही नरक की सृष्टि कर लेते हैं।


स्वयं भगवान भी अनेक अवसरों पर अपने भक्तों से भी क्षमा मांगने में संकोच नहीं करते। अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए उन्होंने प्रकट होकर कहा- क्षन्तव्यगण्ड यदि में समये विलम्यः। संपूर्ण सृष्टि के स्वामी ब्रह्म परमेश्वर द्रवित होकर बालक भक्त प्रहलाद से भी क्षमा याचना करने में जरा सा भी संकोच नहीं करते।


क्षमा याचना करना निर्बलता नहीं बल्कि दृढ़ता का प्रतीक हैबड़प्पन है। क्षमा गुणवानों का आभूषण है। विदुर नीति में 'क्षमा गुणवतां बलम्' कहा गया है। 


सम्पूर्ण संतों ने हमेशा ही क्षमा को सर्वोपरि रखा है। उनका मानना था कि क्षमा से सब कुछ संभव हो जाता है। आधुनिक परिवेश में क्षमा की प्रासंगिकता और भी अधिक बढ़ गई है। यदि समाज को सुदृढ़ और गतिशील बनाना है तो सभी मानवों में क्षमा जैसी अभिव्यक्ति का होना अतिआवश्यक है। तभी एक अच्छे व स्वस्थ समाज की कल्पना की जा सकती है। 


- सी.ए. मणीन्द्र कुमार तिवारी (साभार : सनातन वाणी)


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


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