स्थूलभद्र एवं राजनर्तकी कोशा
राजनर्तकी कोशा और अनन्य वीणावादक स्थूलभद्र का पावन प्रसंग सत्य और सौंदर्य के समन्वय की अविकल गाथा है। सत्यार्थी स्थूलभद्र द्वारा दुर्लभ मंत्री पद का त्याग और विपुल वैभव से संपन्न स्वप्न सुंदरी प्रेयसी कोशा का परित्याग यद्यपि बुद्ध और महावीर के सर्वस्व त्याग की ही पुनरावृत्ति थी, किंतु भौतिक सुखों में लिप्त रहे सिद्धार्थ और वर्धमान यदि भोग से विमुख होकर योग की ओर प्रवृत्त हुए तो वैराग्य भाव से प्रेरित होकर भी मोहयुक्त इंद्रियजीत स्थूलभद्र ने योग और भोग का समन्वय संपन्न करते हुए ‘कमल और कीच' की उक्ति को चरितार्थ किया था। स्थूलभद्र द्वारा कोशा का परित्याग, प्रिया के पास पुनरागमन और सद्धर्म के प्रति समर्पित साध्वी सहचरी कोशा की सहमति से अंतिम निष्क्रमण, आध्यात्मिक प्रेम का ऐसा दुर्लभ प्रसंग है, जो कैवल्य के अनंत श्रृंगार से पूर्ण त्रिरत्न के लौध्ररेणु से परिपूर्ण तथा नैरात्म्य भाव की देव-दुर्लभ उपलब्धि से संपूर्ण हुआ था। बुद्ध और यशोधरा का पुनर्मिलन यदि स्त्री के प्रति पुरुष की पलायनवादी मनोवृत्ति का द्योतक था तो स्थूलभद्र और कोशा का पुनर्मिलन पुरुष और प्रकृति का एक दूसरे के प्रति सर्वस्व समर्पण की निष्काम भावना का पावन प्रतीक था। महामुनि स्थूलभद्र और साध्वी राजनर्तकी कोशा के अविकल प्रेम एवं अनुपम त्याग की अनश्वर गाथा साहित्य, कला और संस्कृति की अमूल्य निधि है, विश्व साहित्य में दुर्लभ महाकाव्य के सृजन की प्रेरक पृष्ठभूमि है।
पर शोक! कोशा और स्थूलभद्र सरीखे दुर्लभ चरित्र भारतवासियों के लिए नितांत अपरिचित तो रहे ही, बल्कि अधिकांश जैन धर्मावलंबियों द्वारा भी प्रायः उपेक्षा के पात्र बने रहे। साहित्य, कला और इतिहास में बुद्ध और महावीर की भांति उन्हें अपेक्षित स्थान नहीं मिला। जबकि महाश्रमण गौतम से दीक्षा पाकर वैशाली की नगरवधू आम्रपाली जनजीवन के प्रत्येक रंगमंच पर महिमामंडित होकर तप और त्याग का प्रेरक प्रसंग बन गई। यह कैसा दुर्भाग्य है कि देवत्वपूर्ण सद्गुणों से विभूषित साध्वी नृत्यांगना कोशा केवल उपेक्षित ही नहीं, अपितु धर्मग्रंथों के पावन पृष्ठों पर सर्वभोग्या गणिका के रूप में उद्धृत होकर कलुष-पंकिल परित्यक्त कमलिनी की भांति अग्राह्य बनी, युग-युग से कलंकित होती रही। विरोधाभासी सत्य की स्थापना की यह कैसी घोर विडंबना है।
(श्री रामेश्वर प्रसाद सिंह के पत्र से)