<no title>

धर्म के सिद्धांतों का प्रचार करते हुए वैशाख कृष्ण 2 को श्री सम्मेत शिखरजी तीर्थ (झारखण्ड) पर मोक्ष प्राप्त किया। प्रभु शीतलनाथ के पांचों कल्याणक शुभ पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में घटित हुएउनके यक्ष ब्रह्मा एवं यक्षिणी अशोका हैउनका लांछन श्रीवत्स है।


काल प्रभाव एवं प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण यह कल्याणक तीर्थ विलुप्त (विच्छेद) हो गया था। श्री ललित कुमार नाहटा एवं जैन श्वेताम्बर कल्याणक तीर्थ न्यास के उनके उत्साही सहयोगियों ने सन् 1993 से इस विलुप्त तीर्थ के स्थान का पता लगाने के प्रयास प्रारम्भ किये। अनेक प्राप्त ग्रंथों एवं उल्लेखों का अध्ययन करने एवं विभिन्न संभावित स्थलों का निरीक्षण करने के बाद उन्होंने सन् 2006 में इस कल्याणक तीर्थ हेतु ग्राम भोंदल, तहसील हंटरगंज, जिला चतरा (झारखण्ड) को श्री भदिलपुर तीर्थ कल्याणक भूमि के रूप में चिन्हित कियाभदिलपुर को तीर्थ भूमि के रूप में चिन्हित करने के उनके निर्णय का समर्थन प्रामाणिक उल्लेखों के रूप में श्री तीर्थमाला अमोलक रत्न (1883) जैन तीर्थों का इतिहास (गुजराती-1948), जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन, श्री कोल्हुआ पहाड़ दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमिटी परिचायिका, पटना जैन संघ की डायरेक्टरी आदि ग्रंथों में मिलता है।


इस कल्याणक तीर्थ की प्रतिष्ठा इस सहस्त्राब्दि की सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रतिष्ठा है, क्योंकि 150 वर्ष से विलुप्त एक कल्याणक तीर्थ की पुनर्स्थापना हुई है। इस कल्याणक तीर्थ की पुनर्स्थापना हेतु भूमि पूजन 23 जनवरी, 2008 को संपन्न हुआ। शिलान्यास 28 जनवरी, 2008 को हुआ, परन्तु दिशा परिवर्तन के कारण इसका पुनः शिलान्यास 8 अगस्त, 2009 को सम्पन्न हुआ। 12 मई, 2014 को अंजनशलाका प्रतिष्ठा समारोह आयोजन के उपरान्त जैन धर्मावलम्बी इस पूजनीय कल्याणक तीर्थ के दर्शन-वंदन से अपनी आत्मा की शुद्धि कर परम आनन्द को प्राप्त करते हैं