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सम्पादकीय


करोड़पतियों का विदेश पलायन


विचलित करने वाली खबरः सरकार ध्यान दे


जून, 2016 में मैंने ‘‘एक खबर के अनुसार वर्ष 2015 में चार हजार भारतीय करोड़पति भारत छोड़कर विदेशों में पलायन कर गये'' पर अपना सम्पादकीय लिखा था। वैसी ही एक खबर नवभारत टाइम्स के 30 मार्च 2018 को पृष्ठ-14 पर प्रकाशित हुई कि 2014 से अब तक 23 हजार करोड़पति देश छोड़ चुके'', बेहद चिंतनीय बात है।


पूर्व में अपना पेट पालने के लिये कम पढ़े लिखे लोग मेहनत मजदूरी के लिये विदेश जाने लगे। फिर पढ़े-लिखे लोग अच्छे अवसर हेतु विदेश जाने लगे। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से जो स्वयं यहाँ लोगों को अच्छे रोजगार प्रदान कराते थे, वे विदेशों की ओर तेजी से पलायन करने लगे हैं । इसमें भी वे सफलतम उद्यमी एवं व्यवसायी अधिक हैं, जो अपना कार्य निष्ठा व ईमानदारी से करते हैं । 


भ्रष्टाचार के वातावरण में भ्रष्टाचारी अधिकारी विभिन्न कानूनों के अन्तर्गत प्राप्त व्यापक अधिकारों का निरंकुश दुरुपयोग करके जब तक उसकी जेब गरम न हो वो व्यापारी व उद्योगपति को जमकर तंग करता है। ईमानदार व्यापारी व उद्योगपति जब उनकी जेब नहीं भरते तो उसको तंग करना अपने चरम पर पहुँच जाता है  व अपने पद एवं प्राप्त अधिकारों का दुरुपयोग कर उस पर जबरदस्त टैक्स, पेनल्टी व जेल की हवा खाने तक के इंतजाम कर देता है तब ईमानदारों के लिये इस देश में रहना तथा उद्योग एवं व्यवसाय करना लगभग दुर्भर हो जाता है। जो व्यापारी व उद्योगपति बेईमानी करते हैं उन्हें तो पहले से ही पता होता है कि किसे, कहाँ व कितना देकर अपना पाप छुपाना है। अतः वह मानसिक रूप से भ्रष्टाचारी अफसर को खुश करने के लिये तैयार होता है, लेकिन ईमानदार व्यापारियों तथा उद्योगपतियों की ऐसी मानसिकता होती नहीं, इसलिये उनको असहनीय मानसिक प्रताड़ना से गुजरना ही पड़ता है। ऐसे लोगों को विदेश, विशेषकर अमरिका व ब्रिटेन ज्यादा सुरक्षित दिखाई देता है।


पूर्व के सम्पादकीय में लिखा था कैसे मुंबई के एक बहुत बड़े ईमानदार भवन निर्माता को कारागार की धमकी देकर करोड़ों रुपये न्यायालय में जमा कराने की शर्त पर जमानत पर छोड़ा गया। महीनों लगे उन्हें न्यायालय में अपने को बेकसूर साबित करने में व अन्ततः न्यायालय ने उन्हें बेकसूर मानते हुये उनके रुपये उन्हें वापस लौटाने का आदेश दिया, यह खुशी की बात है। यहाँ पर उल्लेखनीय है कि असली गुनहगार को अधिकारियों ने तब भी जेल में रख रखा था लेकिन उसने पैसे जमा करने से मना कर दिया, तब अफसरों ने ईमानदार भवन निर्माता को दबोच कर उससे न्यायालय में पैसे जमा कराये व अफसरों ने इसी में अपनी पीठ थपथपायी। निश्चय ही ऐसे हालात में ईमानदार उद्यमी तथा व्यवसायी को अपने देश में रहना ही अखरने लगता है। ये गम्भीर चिंता का विषय है । आजकल कानून में बदलाव लाकर गलती से हुई गलती के लिए अच्छे भले व्यावारी व उद्योगपति को जेल में डाल दिया जाता है। जबकि हत्यारे व बलात्कारी को खुलेआम घूमने के लिए छोड़ दिया जाता है। वर्तमान में यह कहावत अधिक प्रचलित है कि जब विजय माल्या, ललित मोदी, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी आदि को पुलिस नहीं पकड़ पाती तो बिना हेलमेट वालों को ये पुलिस पकड़ कर फूली नहीं समाती।'


नि:संदेह सराकर की मन्शा है भ्रष्टाचार मुक्त देश बनाने की, लेकिन अभी तक इस दिशा में वांछित सफलता नहीं मिली। भ्रष्टाचार का रोग भी तो जड़ों तक पहुँचा हुआ है, अतः इसे निर्मूल करने में समय तो लगेगा ही। सरकार को चाहिये इस ओर दृढ़ता से कदम बढ़ाकर भ्रष्टाचार पनपने के कारणों पर अंकुश लगाये। पूंजी तथा उद्यमी प्रतिभा पलायन पर भी रोकने के सार्थक प्रयास करने होंगे। इस हेतु सरकार व अधिकारी जब तक अपनी सोच में परिवर्तन नहीं करेंगे, अधिकारियों को प्राप्त अवांछित व्यापक अधिकारों तथा उनके निरंकुश उपयोग पर नियंत्रण नहीं किया गया तब तक व्यापारियों, उद्योगपतियों व पढ़े-लिखे लोगों का देश से पलयान रुक नहीं सकता। इससे जहाँ देश की पूंजी तथा उद्यमी प्रतिभा का निरंतर पलायन हो रहा है, वहीं उद्यम तथा व्यवसाय स्थानान्तरित करने से देश में रोजगार के अवसर घटेंगे। इससे जहाँ देश की प्रगति प्रभावित होती है, वहीं संभावित विदेशी उद्यमियों के मध्य देश की साख पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिससे संभावित विदेशी निवेश, पूंजी तथा नवीनतम तकनीक के देश में आने की संभावना भी कमतर हो सकती है । अप्रत्यक्ष रूप से इससे देश में रोजगार कम होगा व प्रगति पर प्रभाव पड़ेगा। अतः सरकार को पूंजी तथा उद्यमी प्रतिभाओं के अवांछित पलायन को रोकने, भ्रष्टाचार के कारणों को निर्मूल करने तथा अधिकारियों को प्राप्त व्यापक अधिकारों की समीक्षा कर आवश्यक प्रशासनिक तथा वैधानिक कदम उठाने की दिशा में अविलम्ब सार्थक उपाय करना चाहिये, ताकि देश की निरंतर प्रगति में व्यवधान नहीं पड़े।